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धर्म और नीति (धर्म) १३ ।
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जो बिना किसी विमनस्कता से पवित्र चित्त से धर्म में स्थित है वह निर्वाण को प्राप्त करता है।
धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है, धर्म का अर्थ है अहिंसा, संयम, और, तप । जिसका मन धर्म मे सदा रमा रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते है।
४४ सदा विषय भोगो मे रहने वाला मनुष्य धर्म के तत्व को नही पहचान सकता।
यह आत्मा सुनकर ही धर्म का मार्ग जानता है और सुनकर ही पाप का । दोनो मार्ग सुनकर ही जाने जाते हैं, जो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करे।
४६ मनुष्य शरीर पाकर भी सद्धर्म का श्रवण दुर्लभ है जिसे सुन कर मनुष्य तप, क्षमा और अहिंसा को स्वीकार करते है।
४७ धर्मोपदेश जिस प्रकार धनवान के लिए है उसी प्रकार गरीब के लिए भी हैं। जिस प्रकार गरीब के लिए है उसी प्रकार धनवान के लिए भी है।
४८ धार्मिक पुरुपो का जागते.रहना अच्छा है और पापी लोगो का सोते रहना अच्छा है।