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चारित्र
साधक चारित्र से भोग वासनाओ का निग्रह करता है।
६५४ चारित्र हीन को मोक्ष नही मिलता ।
६५५ चारित्र सम्पन्नता से जीवन मे निर्मल गुण पैदा होता है।
६५६ एक ही चारित्र है।
ज्ञान और चारित्र ही मोक्ष है ।
जो अपनी आत्मा के लिए किसी भी प्रकार का भय नही देखता है, यही उसके लिए सामायिक कही गयी है ।