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मध्यात्म और वर्शन (सम्यग्दर्शन) २१३
६४८
दर्शन की सम्पन्नता से सांसारिक मिथ्यात्व का छेदन होता है।
६४६ सम्यक् दृष्टि सदैव अमूढ होता है।
सम्यक् दृष्टि वाला अपनी दृष्टि को दूषित नही करे।
६५१
चोवीस तीर्थकरो की स्तुति से सम्यक्त्व शुद्धी होती है।
६५२ दर्शन दो प्रकार का है सम्यक्त्व दर्शन और मिथ्यात्वदर्शन ।