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ज्ञान
आत्म ज्ञानी साधक को किसी भी स्थिति मे न हर्षित होना चाहिए न कुपित ही।
तत्वद्रष्ट्रा को किसी के उपदेश की अपेक्षा नही है ।
६१२ जानी के लिए वन्ध या मोक्ष जैसा कुछ नही है।
जो अपने ज्ञान से संसार को ठीक तरह जानता है, वही मुनि कहलाता है।
६१४ जो संसार के दु.खो का ठीक तरह से दर्शन कर लेता है, वह पाप कर्म नही करता।
ज्ञानी के लिए क्या दुःख क्या सुख ? कुछ भी नही है।
मुमुक्षु तपस्वी अपने कृत कर्मों का बहुत शीघ्र ही अपनयन कर देता है जैसे कि पक्षी अपने पैरो को फड़फड़ाकर उन पर लगी हुयी धूल को झाड देता है।