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धर्म और नीति (धर्म)११
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विद्वान पुरुष जिनभगवान द्वारा उपदिष्ट धर्म का आचरण करे।।
३४ धर्म का मुख ऋपभ देव स्वामी है ।
जिन वचनो मे श्रद्धा करनाय ही धर्म रूची है।
दो प्रकार का धर्म कहा गया है श्रु त धर्म और चारित्र धर्म ।
भगवान ने तीन प्रकार का धर्म बतलाया है सम्यक् प्रकार से सूत्रादि का अध्ययन, सम्यक् प्रकार से ध्यान और सम्यक् तप ।
३८ चार प्रकार के धर्म द्वार है क्षमा विनय सरलता और मृदुता ।
विनय एक स्वयं तप है और वह आम्यन्तर तप होने से श्रेष्ठतम धर्म है।
४० भले ही कोई सहयोग न दे, अकेले ही धर्म का आचरण करना चाहिए।
४१ आर्य महापुरुपो ने समभाव मे धर्म कहा है।