________________
प्रध्यात्म और दर्शन (श्रमण) १६६
६०४ जिस प्रकार मुझे दुख अच्छा नहीं लगता उसी प्रकार सभी जीवो को दु.ख अच्छा नहीं लगता यह समझ कर जो न स्वयं हिंसा करता न करवाता अर्थात् सभी प्राणियो पर समबुद्धि रखता है वही श्रमण है।
६०५ श्रमण की एक व्याख्या यह भी है कि जो किसी से द्वेष नही करता जिसे सब समान भाव से प्रिय है, वह श्रमण है ।
सच्चा श्रमण उसी को कहना चाहिए जो ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न हो सयम और तपश्चरण मे लीन हो और सदा सदगुण को धारण करने वाला हो ।