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अध्यात्म और दर्शन ( श्रमरण) १९७
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भिक्षा वृत्ति सुखो को लाने वाली है ।
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मुनि मौन को ग्रहण करके शरीर मे रहे हुए (आत्मस्थ ) कर्मों को कंपित कर दे |
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जो समस्त प्राणियो के प्रति समभाव रखता है वही श्रमण है । ५६६
श्रमण जीवनोपयोगी आवश्यक्ताओ की इस प्रकार पूर्ति करे कि किसी को कुछ कष्ट न हो ।
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अकिंचन मुनि, और तो क्या अपने देह पर भी ममत्व नही रखते ।
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सोता है, समय पर धर्माराधना कहलाता है |
जो श्रमण खा पीकर खूब नही करता है, वह पाप श्रमण
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जो भ्रमण प्राप्त सामग्री को साथियो मे बाटता नही है वह पाप श्रमण कहलाता है |
६०३
जिसका हृदय सदा प्रफुल्लित है जो कभी भी पाप चिन्ता नही करता जो स्वजन परजन तथा मान और अपमान बुद्धि का सन्तुलन रखता है वही श्रमण है ।