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अध्यात्म और दर्शन ( श्रमरण) १६५
५८६
निर्ग्रन्थ सरल दृष्टि वाले होते हैं ।
५८७
भिक्षु धर्म रूपी वाटिका में ही विचरे ।
५८८
भिक्षु सत्य और मधुर बोलने वाला होता है |
५८६
सब तरह से प्रपञ्च से दूर रहता हुआ मुनि जीवन का व्यवहार चलावे ।
५६०
भिक्षु निद्रा और प्रमाद नही करे ।
५६१
अचचल होता हुआ ( अनासक्त होता हुआ ) भिक्षुओ मे गृद्ध न हो ।
५६२
भ्रमण धर्म का आचरण करना अति कठिन है ।
५६३
मुनि अहकार नही करता है ।
५६४
ममता रहित और अहकार रहित होता हुआ भिक्षु जिन आज्ञानुसार विचरे ।
५६५
रागद्वेष रहित आत्मा वाला भिक्षु अभय दान देता रहे ।