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श्रमण
५७८ जो सुख दुख सहने मे समभाव रखता है, वह भिक्षु है ।
५७६
ज्ञातपुत्र महावीर के वचन मे रूचि लाकर जो पाचो आश्रवो का संवर करता है वही भिक्षु है ।
५८० त्यागे हुए को जो पुनः ग्रहण नहीं करता वही भिक्षु है ।
५८१ जो किसी मे भी मूच्छित नही होता है वही भिक्षु है।
५८२
जो मन वचन काया के द्वारा सवृत्त है, व्रत शील है, वही भिक्षु है।
५८३ जो धर्म ध्यान में रत है वही भिक्षु है ।
५८४
जो सभी प्रकार की सगति से दूर है वही भिक्षु है ।
अनाविल (पापरहित) अथवा अकषायी ही भिक्षु होता है।