________________
मध्यात्म श्रीर दर्शन ( वैराग्य) १६१
५७६
जितने भी अज्ञानी पुरुष हैं वे सब दुःख के भागी है । सत् असत् के विवेक से शून्य वे इस अनन्त ससार मे बार-बार पीड़ित होते रहते है ।
५७७ सावक, न तो जीवित रहने की इच्छा करे और न शीघ्र मरना ही चाहे, जीवन तथा मरण किसी मे भी आसक्ति न रखे ।