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________________ अध्यात्म और दर्शन (वैराग्य) १८५ ५५७ टूटा हुआ जीवन पुन. नही जोडा जा सकता है फिर भी वालजन पाप करता ही रहता है । ५५८ सो वर्ष की आयु वाले पुरुप की आयु भी तरुण अवस्था मे टूट जाया करती है अत यहा पर अल्प कालीन वास ही समझो। ५५६ जैसे बंधन से गिरा हुआ ताड़फल टूट जाता है वैसे ही आयुष्य के क्षय होते ही प्राणी परलोक चला जाता है। दु.ख का अनुभव अकेले को ही और खुद को ही करना पड़ता है। ५६१ यह ससार मृत्यु से पीडित है और वुढापे से गिरा हुआ है। माता पिता पुत्र वन्धु भाई कोई भी मेरी रक्षा के लिए समर्थ नही है। एकत्व भावना को ही प्रार्थना करो।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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