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अध्यात्म और दर्शन ( श्रात्मा) १७५
५२६
आत्मा और है शरीर और है ।
५३०
मैं आत्मा अविनाशी हूँ और अवस्थित भी हूँ ।
५३१
आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुन्थुआ इन दोनो में एक ही आत्मा है ।
५३२
आत्मा का दुख अपना ही किया हुआ दुख है, किसी अन्य का नही ।
५३३
शरीर नाव है, आत्मा नाविक है । ससार समुद्र है इस ससार समुद्र को महर्षि जन पार करते हैं ।
५३४
दूसरे लोग मेरा बन्धनादि से दमन करें इसकी अपेक्षा मैं सयम और तप के द्वारा अपना दमन करूँ, यह अच्छा है ।
५३५ सिर काटने वाला शत्रु भी उतना बुरा नही करता जितना कि दुराचरण मे आसक्त श्रात्मा करती है ।