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प्रात्मा
५२३ स्वरूप दृष्टि से सभी आत्माएं समान हैं ।
५२४ मुक्त जीवात्मा अमूर्त स्वरूप है, इसलिए इन्द्रियो द्वारा ग्राह्य नही है, अमूर्त स्वरूप होने की वजह से वह निश्चय पूर्वक नित्य है।
५२५ मुक्त जीव अरूपी सत्ता वाला होता है, शब्दातीत के लिए शब्द नही होता अपद के लिए पद नही है ।
५२६ । जिससे ज्ञान होता है, वही आत्मा है ।
५२७ यह आत्मा अनेक बार काटा गया, फाडा गया, छेदन किया गया और चमडी उतारी गयी। फिर भी आत्मा-आत्मा है।
५२८ यह पापी आत्मा पापकर्मों द्वारा आग से जलाया गया, पकाया गया और दु.ख झेलने के लिए विवश किया गया। फिर भी यह ज्यो का त्यो है।