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धर्म
१७ संसार समुद्र मे धर्म ही द्वीप है।
वर्म दीपक की तरह अज्ञान अन्धकार को दूर करने वाला है।
धर्म रूपी तालाब मे ब्रह्मचर्य रूप घाट है।
धर्म का मूल विनय है।
२१ इस मनुष्य लोक मे धर्माराधन के लिए मनुष्य ही समर्थ है।
२२
धर्म रूपी धुरा के अंगीकार कर लेने पर धन से क्या ?
२३
जो धर्म का आचरण कर के परभव को जाता है वह सुखी होता है।
२४ आचरण में कठिनाई वाला, फल मे सुन्दर ऐसे धर्म का तू आचरण कर।