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धर्म और नीति ( सदाचार) १५७
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धर्म शिक्षा सम्पन्न गृहस्थ गृहवास मे भी सदाचारी है । ज्ञानी और सदाचारी आत्माएं मरण काल में भी भयाकान्त नही होते ।
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गर्दन काटने वाला शत्रु भी इतनी हानि नही करता जितनी हानि दुराचार मे प्रवृत्त अपना ही स्वयं का आत्मा कर सकता है ।
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बन्ध और मोक्ष की चर्चा करने वाले दार्शनिक केवल वाणी के बल पर ही आत्मा को आश्वासन देते हैं । किन्तु आचरण कुछ भी नही करते वे केवल बोलकर ही रह जाते हैं ।
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विविध भाषाओ का ज्ञान मनुष्य को दुर्गति से बचा नही सकता तो फिर विद्याओ का अनुशासन कैसे किसी को बचा सकेगा ?
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हे राजन् । तुम जीवन के पूर्वकाल मे रमणीय होकर उत्तर काल मे अरमणीय मत बनना ।