________________
सदाचार
४८८ जिस प्रकार सडे हुए कानों वाली कुतिया जहाँ भी जाती है, निकाल दी जाती है उसी प्रकार दुःशील उद्दड और वाचाल मनुष्य भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है।
४८४ जिस प्रकार चावलो का स्वादिष्ट भोजन छोडकर शूकर विष्ठा खाता है उसी प्रकार पशुवत जीवन बिताने वाला अज्ञानी सदाचार को छोड कर दुराचार को पसन्द करता है।
४६० आत्मा का हित चाहने वाला साधक स्वयं को सदाचार मे स्थिर करे।
४६१
चीवर, मृगचर्म, नग्नता, जटाएं, और शिरोमुंडन, ये सभी उपक्रम माचार हीन साधक की दुर्गति से रक्षा नही कर सकते।
४६२ भिक्षु हो चाहे गृहस्थ हो जो सदाचारी है वह दिव्य गति को प्राप्त होता है।