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रात्रि भोजन
४८० सूर्योदय के पहले या मूर्यास्त के बाद संयमी मनुष्य को भोजन पान आदि किसी भी वस्तु की मन से इच्छा नही करनी चाहिए।
४८१ ससार में बहुत से त्रस और स्थावर प्राणी बडे ही सूक्ष्म होते है वे रात्रि को दिखाई नही देते तव रात्रि भोजन कैसे किया जा सकता ? .
४८२ साधक अन्नपाणखादमस्वादम इन चारो आहार का रात्रि में न स्वय सेवन करे न करावे न करते हुए को भला जानें।
४८३ जो रात्रि भोजन से विरत रहता दूर रहता वह आस्त्रव रहित हो जाता है।
४८४ कही जमीन पर कुछ पडा होता है, कही बीज बिखरे होते हैं और कही पर सूक्ष्म कीड़े मकोड़े होते हैं दिन मे तो उन्हे टाला जा सकता है किन्तु रात्रि मे उन्हे बचाकर भोजन कैसे किया जा सकता है।