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धर्म मोर नीति (ब्राह्मण कोन?) १४६
४७३ जो देवता मनुष्य तथा तीर्यञ्च सम्बन्धी सभी प्रकार के मैथुन भाव का तन मन वचन से कभी सेवन नहीं करता उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
४७४ जसे कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल से लिप्त नही होता उसी प्रकार जो संसार में रह कर भी काम वासनाओ से लिप्त नही होता उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
४७५ जो स्त्री पुत्रादि के सम्बन्धो को जाति बिरादरी के मेल मिलाप को बन्धु जनो को एक बार त्याग कर उनके प्रति कोई आसक्ति नही रखता, दुबारा काम भोगों में नहीं फंसता उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
४७६ कर्म से ही ब्राह्मण होता है।
४७७ जो तपस्वी कृश एवं इन्द्रियो का दमन करने वाला है जिसके मास और रुधिर का अपचय हो चुका है जो व्रतशील एवं शान्त है उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
४७८ जो मनुष्य लोलुप नहीं है जो निर्दोष भिक्षा वृत्ति से निर्वाह करता है, जो गृह-त्यागी है, अकिंचन है, गृहस्थो में अनासक्त है उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।
४७६ ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण होता है।