________________
धर्म और नीति (विनय) १४५
४६२
गुरुजनो के अनुशाशन से कुपित नही होना चाहिए ।
४६३ विनीत शिष्य गुरुजनो की हितशिक्षा को हितकर मानता है पर अवनीत को वे बुरी लगती हैं।
४६४ विनीत शिष्य को शिक्षा देता हुआ ज्ञानी गुरु उसी प्रकार प्रसन्न होता है जिस प्रकार अच्छे घोडे पर सवारी करता हुआ घुडसवार ।
४६५ मूर्ख शिष्यो को शिक्षा देता हुआ गुरु वैसे ही खिन्न होता है जैसे अडियल घोड़े पर चढा हुआ सवार ।
yey
,
४६६ बुद्धिमान ज्ञान प्राप्त करके विनीत हो जाता है।
४६७ अपनी आत्मा का हित चाहने वाले को विनय धर्म मे स्थिर रहना चाहिए।