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विनय
४४३ जो मुनि अभिमान, क्रोध, माया या प्रमादवश गुरु के निकट रहकर विनय नही सीखता, उनके प्रति विनय का व्यवहार नहीं करता उसका यह अविनयी भाव बास के फल की तरह स्वय के लिए विनाश का कारण बनता है ।
४४४ संभव है कदाचित अग्नि न जलावे, सम्भव है कुपित विषधर न डसे और यह भी सम्भव है कि हलाहल विष भी मृत्यु का कारण न वने किन्तु गुरु की अवहेलना करने वाले साधक के लिए मोक्ष सम्भव नही है।
४४५ कोई महापुरुष सुन्दर शिक्षा द्वारा किसी को विनय मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे तब वह कुपित होता है। ऐसी स्थिति में वह स्वय अपने द्वार पर आई हुयी दिव्य लक्ष्मी को डण्डामार कर भगा देता है।
४४६ वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है स्कन्ध के पश्चात् शाखाए और शाखाओ मे प्रशाखाए निकलती है इसके पश्चात् फूल फल और रस उत्पन्न होता है।