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लोभ
४२५ लोभ सभी सद्गुणो का नाश कर देता है।
४२६ लोभ मुक्ति पथ का अवरोधक है।
४२७ लोभ को सन्तोष से जीतना चाहिए ।
४२८ जो व्यक्ति लोभ करता है वह अपनी ओर से चारो ओर वैर की अभिवृद्धि करता है।
४२४ लोभ से दोनो लोक में भय रहा हुआ है।
४३० चावल और जो आदि धान्यों तथा सुवर्ण और पशुओ से परि पूर्ण यह समूची पृथ्वी मी लोभी को तृप्त नहीं कर सकती यह जानकर संयम मे रत होना चाहिए ।
४३१ अनेक बहु मूल्य पदार्थों से परिपूर्ण सारा विश्व भी किसी एक मनुष्य को दे दिया जाय तो भी वह सन्तुष्ट न होगा। लोभी आत्मा की तृष्णा इस प्रकार शान्त होनी अत्यन्त कठिन है।