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माया
४११ मायावी और प्रमादी वार वार गर्भ मे अवतरित होता है, जन्म मरण करता है।
४१२ मन मे रहे हुए विकारो के सूक्ष्म शल्य का निकालना बहुत कठिन हो जाता है।
४१३ वास की जड के समान गाठदार माया आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है।
४१४ जिसके अन्दर मे माया का अश है वही नाना रूपो का प्रदर्शन करता है वैसा अमायी नही करता है।
४१५ माया को जीत लेने से सरल भाव प्राप्त होता है ।
४१६ जो मान करने वाले है, वे माया करने वाले भी है ।
४१७ सरलता से माया-कपट को जीतें ।