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धर्म और नीति (मान) १२७
४०१ गोत्राभिमानी को उसकी जाति व कुल शरणभूत नही हो सकते । मात्र जान और धर्म के सिवाय अन्य कोई भी रक्षा नही कर सकते।
४०२ आत्मा के लिए समुत्कर्ष शील (अहंकारी) न हो।
४०३ अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है।
४०४ अभिमानी अपने अहकार से चूर होकर दूसरो को सदा परछाई के समान तुच्छ मानता है ।
४०५ जो अपनी बुद्धि के अहंकार मे दूसरो की अवज्ञा करता है वहमद बुद्धि है
४०६ पत्थर के खभे के समान जीवन मे कभी नहीं झुकने वाला अहकार आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है।
४०७ अभिमान को जीत लेने से नम्रता जागृत होती है।
४०८ ज्ञान प्राप्त होने पर मान न करें।
४०४ मान न करें।
४१०
मान की इच्छा मत करो।