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३६५ प्रज्ञा मद, तप मद गौत्र मद और आजीविका मद, इन चार प्रकार के मदो को नही करने वाला निस्पृह भिक्षु सच्चा पण्डित और पवित्रात्मा होता है ।
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अहकार करता हुआ मनुष्य महामोह से विवेक शून्य होता है।
३९७ अज्ञान वश अपने आपको ज्ञानी समझने वाला समाधि से बहुत दूर है।
३९८ जो मान वाला है उसके हृदय में माया भी निवास करती है ।
३६६ मान विनय गुण का नाश करता है ।
४०० मान को नम्रता से जीते ।
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