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धर्म और नीति (कोष) १२१
३८६ क्रोध प्रीति का नाश करता है।
३८७ शान्ति से क्रोध को जीतो।
३५८ आत्मसाधक कम्प रहित होकर क्रोधादि कपाय को नष्ट कर के कर्मरूपी काष्ठ को जला डालता है।
३८४ कोष मनुष्य की आयु को नष्ट करता है तथा क्रोध से मानसिक दु.ख होता है । क्रोधी मनुष्य पाप कर्म को बांधकर नरक मे जाता है और वहां नाना प्रकार के दुखों को भोगता है, यह समझ कर क्रोध का त्याग करना चाहिए ।
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क्रोध उत्पन्न होने के चार कारण हैं -१. क्षेत्र नरकादि आश्रित २. वस्तु घर अथवा सचित्त अचित्त मिश्र वस्तु आश्रित ३ शरीर कुरूपादि आश्रित ४. उपाधि उपकरण आश्रित ।
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क्रोध के चार प्रकार-१. आत्म प्रतिष्ठित-अपनी भूल पर होने वाला २. पर प्रतिष्ठित-दूसरे के निमित्त से होने वाला ३. तदुभय प्रतिष्ठित दोनो के निमित्र से होने वाला ४. अप्रतिष्ठित निमित्त के विना उत्पन्न होने वाला।