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स्वाध्याय
३७५ स्वाध्याय करते रहने से समस्त दु.खों से मुक्ति मिल जाती है।
३७६ स्वाध्याय रूपी तप सभी भावो का प्रकाशक है ।
३७७ स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है।
३७८ स्वाध्याय के समान दूसरा तप न कभी हो सका, न वर्तमान मे कहीं और न भविष्य मे कभी होगा।