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धर्म श्रोर नीति ( सयम ) १११
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भोग समर्थ होते हुए भी जो भोगों का परित्याग करता है, वह करता है, उसे मुक्ति रूप महाफल
कर्मों की महान निर्जरा प्राप्त होता है ।
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जो पराधीनता के कारण विपयो का उपभोग नही कर पाते, उन्हें त्यागी नही कहा जा सकता ।
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जो मनोहर और प्रिय भोगो के उपलब्ध होने पर भी, स्वाधीनता पूर्वक उन्हें पीठ दिखा देता है अर्थात् त्याग देता है, वही त्यागी कहलाता है ।