________________
1
धर्म और नीति ( वीतराग ) १०३
३३६
वीतराग भाव को प्राप्त हुआ जीव सुख दुख मे एकसा रहता है ।
३३७
जो आत्मा विषयो से दूर है, वह ससार मे रहता हुआ भी जल मे कमलिनी पत्र के समान अलिप्त रहता है ।
३३८
जिस सावक ने आसक्ति भाव को नष्ट कर दिया है, वह मनुष्यो के लिए मार्ग-दर्शक चक्षु रूप है ।
३३ε
साधक सुखाभिलाषी वन काम भोगो की कामना न करे और प्राप्त भोगो के प्रति भी निस्पृह भाव रखे ।