________________
धर्म और नीति (समभाव) ९५
३०९ जो लाभ, अलाभ सुख, दुःख ,जीवन, मरण, निन्दा, प्रशसा, और मान अपमान मे समभाव रखता है वही वस्तुतः मुनि है ।
माधक मिलने पर गर्व न करे और न मिलने पर भोक न करे ।
३११ सकट की घड़ियों मे भी मन को ऊ चा नीचा अर्थात् डावाडोल नही होने देना चाहिए ।
३१२ । साधक को सदा समता का आचरण करना चाहिए।
३१३ सुन ती को सर्वत्र समताभाव रखना चाहिए ।
३१४
प्रिय हो, अप्रिय हो, सबको समभाव से सहन करना चाहिए ।
३१५ स्वजन तथा परजन मे, मान एव अपमान मे जो सदा समभाव रखता है, वह श्रमण होता है ।
समस्त प्राणियो के प्रति जो समभाव रखता है, वही सच्चा साधु है।