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________________ (७१) मीमासक आदि सभी आत्मवादो दर्शन तो मानते ही है किन्तु अनात्मदादी वौद्ध दर्शन भी इसे स्वीकार करता है। इस तरह ईश्वरवादी और अनीश्वर वादी सभी इस मे प्राय एकमत है । किन्तु इस सिद्धान्त मे एकमत होते हुए भी कर्म के स्वरूप और उस के फल देने के सम्बन्ध मे इन मे महान मतभेद मिलता है । ___ कर्मशब्द के अनेको अर्थ पाए जाते है । काम धन्धे के अर्थ मे कर्म शब्द का प्रयोग होता है । खाना, पोना, चलना, फिरना आदि क्रिया का भी कर्म के नाम से व्यवहार किया जाता है । इसी प्रकार कर्म-काण्डी मीमासक याग आदि क्रिया-काण्ड के अर्थ मे, स्मार्त विद्वान ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि चारो वर्णो तथा ब्रह्मचर्य आदि चारो आश्रमो के लिए नियत किए गए कर्म रूप अर्थ मे, पौराणिक लोग व्रत, नियम आदि धार्मिक क्रियाओ के अर्थ मे, व्याकरण के निर्माता "कर्ता जिस को अपनी क्रिया के द्वारा प्राप्त करना चाहता है, अर्थात् जिस पर कर्ता के व्यापार का फल गिरता है" इस अर्थ मे, नैयायिक लोग उत्क्षेपण आदि पाच. साकेतिक कर्मों में कम शब्द का व्यवहार करते है, किन्तु जैनदर्शन मे एक पारिभाषिक अर्थ मे इस का व्यवहार किया जाता है । जैनदर्शन का कर्म सम्बन्धी पारिभापिक अर्थ पूर्वोक्त सभी अर्थो से भिन्न और विलक्षण मिलता है। जैन दर्शन की मान्यता के अनुसार कर्म नैयायिको या वैशेपिको की भाति क्रियारूप नही है, किन्तु पौद्गलिक है, द्रव्य रूप है, श्रात्मा के साथ प्रवाह रूप से अनादि सम्बन्ध रखने वाला एक अजीव द्रव्य है। जैन दृष्टि से कर्म, द्रव्य और भाव, इन भेदो से दो प्रकार का होता है, जीव से सम्बद्ध कर्म-पुद्गलो को द्रव्य कर्म कहते
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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