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अपनी बात
"भगवान महावीर के ५ सिद्धान्त" इस पुस्तक को लिखने की एक लम्बी कहानी है। दो वर्ष होने को हैं,श्रद्धेय तपस्वी श्रीस्वामी लाभ चन्द जी महाराज के साथ मुझे जण्डियालागुरु (अमृतसर) जाने का अवसर प्राप्त हुआ, वहा जाने का मेरा, यह दूसरा मौका था। एक बार मैं वैराग्य अवस्था मे गया था, और अब कि बार दीक्षितदशा मे । जण्डियाला गुरु मे स्थानकवासी युवको का एक दल बना हुआ है, जिसे "वीर मण्डल" के नाम से पुकारा जाता है । रात्रि के प्रतिक्रमण के अनन्तर वीर-मण्डल के युवको से मिलने का अवसर मिलता था। उन से धर्म-चर्चा की जाती थी, उन्हे जैनसिद्धान्त समझाए . जाते थे। इस धर्म-चर्चा मे वीर-मण्डल के युवको के अलाव- - अन्य श्रावक लोग भी सम्मिलित रहा करते थे। यह धर्मा चर्चा बिना कारण प्रति-रात्रि की जाती थी। सोत्साह सभी . युवक इसमें भाग लेते थे । सर्वप्रथम मैं स्वय सब से एकप्रश्न पूछ लेता था, तदनन्तर युवकवर्ग उसका उत्तर दिया करता था । उत्तर-प्रदान की यह प्रक्रिया व्यवस्थित और क्रमपूर्वक चलती थी, एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, - इस प्रकार क्रमपूर्वक सभी उपस्थित लोग खड़े होकर अपने.. अपने ढंग से प्रश्न का उत्तर दिया करते थे । इस पद्धति को