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शास्त्रकोटि: वृथैवान्या, तथा चोक्त महात्मना ।
(अध्यात्मसार) अर्थात- सच्चा अनेकान्तवादी किसी भी दर्शन से द्वेष नहीं करता है। वह सम्पूर्ण नयरूप दर्शनो को इस प्रकार वात्सल्य दृष्टि से देखता है, जैसे कोई पिता अपने पुत्रों को देखता है। क्योंकि अनेकान्तवादी की न्यूनाविक बुद्धि नहीं हो सकती। वास्तव मे सच्चा शास्त्रज्ञ कहलाने का अधिकारी वही है जो अनेकान्तवाद का अवलम्बन लेकर सम्पूर्ण दर्शनों में सनभाव रखता है। माध्यस्थ्य भाव ही शास्त्रों का गूढ रहस्य है। यही धर्मवाद है । माध्यस्थ्य भाव रहने पर शास्त्रो के एक पद का नाम भी सफल है। अन्यथा करोड़ों शास्त्रों के पढ़ जाने से भी कोई लाभ नहीं है।
आज चारों ओर जो पारिवारिक,मामाजिक राष्ट्रिय तथा धार्मिक विरोध दृष्टिगोचर हो रहे हैं, और कलह, ई, अनुदारता, साम्प्रदायिकता तथा सकीर्णता आदि दोषों ने मानवसमाज को खोखला बना डाला है। इन सब को शान्त करने का एकमात्र यदि कोई उपाय है तो बस वह अनेकान्तवाद ही है। विश्व में जब भी कभी शान्ति होगी तो वह अनेकान्तवाद के आश्रयण से ही होगी यह बात नि सन्देह सत्य है।
अनेकान्तवाद और विज्ञान.
भगवान महावीर ने विश्व की प्रत्येक वस्तु मे अनन्त धर्म स्वीकार किए हैं, और उन धर्मों का समन्वय वे अनेकान्तवाट कद्वारा करते हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है । प्रत्येक पदार्थ अनेकधर्मात्मक है। विज्ञान कहता है कि पदार्थ म एम अनेकों गुण विद्यमान हैं, जिन्हें पूरी तरह जाना नहीं जा सका है।