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पहला व्यक्ति एकान्तवाद को लेकर चल रहा है और दूसरा अनेकान्तवाद को अपना रहा है ।
वस्तु के अनेक धर्मों का जो समन्वय करता है, उसी तथ्य का नाम अनकान्तवाद है । अनेकान्तवाद प्रत्येक व्यक्ति वो वस्तु के सभी धर्मो का समझ लेने की बात कहता है किन्तु एकान्त-वाद मे ऐसी बात नहीं होता । उस में किसी पदार्थ पर भिन्न दृष्टियों से विचार नहीं किया जाता है, उसे वस्तु का एक धर्म ही इष्ट है। इसीलिए भगवान महावीर कहत हैं कि एकान्तवाद अपूर्ण हैं, सत्यता को पंगु घनाने वाला है और यह लोक-व्यवहार का माधक न हो कर बाधक ही बनता है ।
एकान्तवाद की व्यवहारबाधकता :
एकान्तवाद की व्यवहार - बाधकता को एक उदाहरण द्वारा समझिए । कल्पना करो | एक व्यक्ति दुकान पर बैठा है। एक ओर से एक बालक श्राता है । वह उसे कहता है - पिता जी । दूसरी ओर से एक बालिका आती है । वह कहती है-चाचा जी । तीसरी ओर से एक वृद्धा आती है, वह कहती है- पुत्र । चौथी ओर से उस का समवयस्क एक मनुष्य आता है । वह कहता है - भाई ! इतने में दुकान के भीतर से एक युवक निकलता है । वह कहता है- मामा जी । मतलब यह है कि कोई व्यक्ति उस पुरुष को पिता जी, कोई चाचाजी, कोई ताऊ जी, कोई मामा जी और कोई उसे भ्राता जी कहता है । और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी-अपनी बात का आग्रह भी है। एक दूसरे की बात को कोई मानने को तैयार नहीं है । पुत्र कहता है कि ये तो पिता ही हैं । वृद्धा कहती है- नहीं नहीं | यह तो पुत्र ही है । इस प्रकार सभी को अपनीअपनी बात का आम हो रहा है। सभी एकान्तवादी बने हुए हैं और