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बडे उपासक और प्रचारक थे किन्तु उनके शासनकाल में भारत कभी पराधीन नहीं हुआ । बल्कि भारत की जितनी विशाल सीमाएं उस काल में थीं, उतनी कमी नहीं रहीं और निकट भविष्य मे होने की संभावना भी नहीं की जा सकती ।
इस के अलावा एक बात और जान लेनी चाहिए कि जैनशास्त्रो मे हिंसा के चार प्रकार लिखे है-सकल्पी, प्रारंभी, उद्योगी
और विरोधी । जानबूझ कर मारने का इरादा करके किसी प्राणी को मारना सकल्पी हिंसा है। चौके, चूल्हे आदि के काम-धन्धों मे जो हिंसा होती है, वह आरभी हिंसा कहलाती है । खेती बाडी व्यापार तथा अन्य उद्योग करते हुए जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा कही जाती है । शत्रु द्वारा आक्रमण होने पर देश को विनाश से बचाने के लिए, अन्याय अनीति और अत्याचार का प्रतिकार करने के लिए जो युद्ध लड़े जाते हैं, उन में जो हिंसा होती है, उस हिंसा का नाम विरोधी हिंसा है। जैन गृहस्थ इस चतुर्विध हिंसा में से केवल मकल्पी हिंसा का त्यागी होता है। मारने की इच्छा से जो निरपराध प्राणी की हिंसा की जाती है, उसे वह सदा के लिए छोड़ देता है, किन्तु देश जाति की रक्षा के लिए आततायी लोगों से जो मोर्चा लेना पड़ता है, उस में जो हिंसा होती है, उस का त्याग उसे नहीं होता है। जैनधर्म को अपनाने वाला कोई भी जैन गृहस्थ यदि शत्रुओ का दमन करता है। देश, जाति और धर्म के हत्यारों के साथ दो हाथ करता है, तो ऐसा करता हुआ भी वह अपने धर्म से च्युत नहीं होता। क्याकि धर्म ग्रहण करते समय उसने विराधी हिंसा का परित्याग ही नहीं क्रिया है।
अहिंसा को कायरता का प्रतीक समझने वाले लोगो को महात्मा गाधी का जीवन देखना चाहिए । गाधी जी अहिंसा के उपासक थे ।