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(२०२) को मिट्टी के अलावा और कोई वस्तु नही भर सकती।
परिग्रह या लोभ की आग जब अन्त करण मे धधकती है, तो उसमे सभी सद्गुण और सभी मानवोचित सद्भावनए दग्ध हो जाती हैं । लोभी का हृदय वह ऊसर भूमि है, जिसमे कोई भी सद्गुण पनपने नही पाता, वह अनेकविध दुर्गुणो का शिकार हो जाता है। इसलिए एक उर्दु का कवि कहता
गर हिरसो हवा के फन्दे मे, तू अपनी उमर गंवाएगा। न खाने का फल देखेगा, न पीने का सुख पाएगा। इक दो गज कपड़े तार सिवा, कुछ सग न तेरे जाएगा। ऐ लोभी बन्दे ! लोभ भरे !, तू मर कर भी पछताएगा। इस हिरसो हवा की झोली से, है तेरो शक्ल भिखारी की। पर तुमको अबतक खबर नही,ऐ लोभी अपनी स्वारी की ।। हर आन किसी से कजियाहै,या हर आन किसीसे झगड़ा है। कुछ मीन नही,कुछ मेख नही,सब हिरसो हवाका झगड़ा है।।
ईसाई धर्म लोभ का,मोह का कितनी सुन्दरता से निराकरण करता है
Take heed and beu are of c veto isness, for a man's life con-isteth not in the abundance of the things which he possesseth;
(LUKES 12-15) अर्थात् -सावधान रहो, और लोभी मन का ध्यान रखो कि मनुप्य का वास्तविक जीवन धन, सम्पत्ति ने नही बनता है।