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लादा नही जाता है । विचारो मे परिवर्तन ला कर इस की प्रतिष्ठा की जाती है । रूस का साम्यवाद हिसक क्रान्ति है। और भगवान महावीर का अपरिग्रहवाद अहिंसक । एक में हिंसा की प्रधानता है, जबकि दूसरे मे अहिंसा का पवित्र प्रवाह प्रवाहित हो रहा है ।
अपरिग्रहवाद और साम्राज्यवाद --
अपरिग्रहवाद और साम्राज्यवाद का पारस्परिक कोई सम्बन्ध नही है । इन मे दिन रात का सा विरोध चलता है । अपरिग्रहवाद दैवी भावना का प्रतीक है, जबकि साम्राज्यवाद मे ऐसा नही है । अपरिग्रहवाद मनुष्य को धनलिप्सु न बना कर उसे विश्वप्रेम तथा " - आत्मवत् सर्वं भूतेषु " का मंगलमय पाठ पढाता है, और साम्राज्यवाद मनुष्य मे एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को अधिकार मे लाकर उसे अपने हित का साधन बना लेने की भावना को जन्म देता है । जैसे राम और रावण, कृष्ण और कस एक सिहासन पर नही बैठ सकते है, वैसे अपरिग्रहवाद और साम्राज्यवाद भी एक स्थान पर एकत्रित नही हो सकते है ।
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अपरिग्रहवाद की उपयोगिता -
आज ससार मे जो आर्थिक विषमता चल रही है, सर्वत्र शान्ति और दुख का वातावरण वन रहा है । मनुष्य मनुष्य का सहायक और रक्षक होने के वदले भक्षक बना हुआ है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को दबाने और हडपने की योजनाए बना रहा है । और ऐसा करने मे ही अपना कल्याण समझ रहा है । इसका मूल कारण मनुष्य का लोभ या संग्रहवृत्ति हो है, अपनी