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________________ अपरिग्रह-वाद मगलमूर्ति भगवान महावीर का पाचवा सिद्धान्त अपरिग्रहवाद है। भगवान ने जितना बल अहिंसा, सत्य आदि महाव्रतो पर दिया है, उस से भी कही अधिक वल उन्होने अपरिग्रह पर दिया है। क्योंकि कोई भी आध्यात्मिक अनुष्ठान अपरिग्रह को छोड़ कर एक पग भी आगे नही वढ सकता है। अपरिग्रह को अपनाए विना और परिग्रह का त्याग किए बिना अहिंसा जीवित नही रह सकती। अपरिग्रह के अभाव मे सत्य-सूर्य असत्य के कालेकाले घिनौने वादलो से आच्छादित हो जाता है। परिग्रह के हिमपात से अचौर्य का सरस पौधा सूखने लगता है, परिग्रह के प्रहारों से ब्रह्मचर्य का महादेव कराह उठता है और परिग्रह का दानव सन्तोष का तो सर्वस्व ही लूट लेता है । वस्तुत परिग्रह अध्यात्म जीवन का सब से बडा शत्रु है । आत्मा को सब ओर से जकडने वाला यह सब से बड़ा वन्धन है। इसीलिए भगवान महावीर ने सयम और साधना के पथ पर चलने वाले साधक को परिग्रह से सदा वचने की महाप्रेरणा प्रदान की है। अध्यात्मवाद के सर्वोच्च शिखर पर खडे होकर एक दिन भगवान महावीर ने स्वय कहा था चित्तमतमचित्त वा, परिगिझ किसामवि । अन्न वा अणुजाणइ, एव दुक्खाण मुच्चइ । (सूत्रकृताग १/१/१२)
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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