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। (१३४) लेने पर ईश्वर पर ही दोषो का उत्तरदायित्व आ जाता है। इसलिए ईश्वर भाग्यविधाता नही है, यही मानना उपयुक्त
और उचित प्रतीत होता है। ____ इस के अलावा, भाग्य का विधाता ईश्वर समभावी है, उस के यहा राग, द्वेष का चिन्ह भी नही है । फिर उस ने भाग्य का निर्माण करते समय किसी का भाग्य अच्छा और किसी का भाग्य बुरा क्यो बना दिया है ? सब प्राणियो का भाग्य उसे एक जैसा बनाना चाहिए था। पर देखा जाता है, कोई तो ऐसा भाग्यशाली है कि लक्ष्मी उस के चरण चूमती है, गगनचुबी अट्टालिकामो मे रमणियो के साथ आनन्द लूटता है
और कोई ऐसा भाग्यहीन है कि कौड़ी-कौडी को तरसता है, भूखा मरता है, दिन रात परिश्रम करने पर भी खाली ही रहता है। अपने परिवार का तो क्या, आराम के साथ अपना भी पेट नही पाल सकता। बेचारा भूखा सोता है। भूख की आग से झुलसा हुआ ही तड़प-तडप कर जीवन खो बैठता है। वीतरागी और समभावी ईश्वर के दरबार मे यह अन्धेर क्यो? यदि यह कहा जाए कि यह सब तो मनुष्य के दुष्ट कर्मों का परिणाम है तो हम पूछते है कि ईश्वर ने उस का ऐसा भाग्य ही क्यो बनाया, जिस से वह दुष्टकर्म करे ? वस्तुत. ईश्वर को भाग्यविधाता मान कर उस पर जो आपत्तिया आती है, उन का कोई सन्तोषजनक समाधान नही है । इसीलिए जैनदर्शन कहता है कि भाग्य का निर्माण मनुष्य स्वय करता है। अच्छा भाग्य बनाए या बुरा, यह सब मनुष्य के हाथ की बात है। परमपिता परमात्मा का उस मे कोई दखल नही है । .