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(१२४) पाया जाता है। एक वेदो द्वारा मूर्तिपूजा का समर्थन करता है, तो दूसरा उन्ही वेदो को आधार बना कर उस का निषेध करता है। एक वेदो से पशुबलि और *मासाहार का विधान करता है और दूसरा उस का विरोध । एक वेदो से श्राद्ध, मृतकक्रिया आदि अनुष्ठानो को प्रमाणित करता है, और दूसरा उन को सर्वथा अप्रामाणिक ठहराता है। इस प्रकार वैदिक धर्म के अनुयायी लोगो मे वेदवाक्यो को लेकर पारस्परिक महान मतभेद और विरोध पाया जाता है । यदि ईश्वर ही सर्वेसर्वो है, और वस्तुत. वेद उसी को रचना है, तो अपने ही वेदो को आचार-विचार सम्बन्धी युद्ध के अखाड़े का कारण क्यो बनने देता है ? ईश्वर ने ऐसे विरोध-मूलक वेदो का निर्माण हो क्यो किया है ? जनमानस को लड़ाने वाले वेदो को बनाने की आवश्यकता ही क्या थी ? यदि कहा जाए कि वेदो मे परस्पर विरोध रखने वाली कोई बात नही है, विरोध तो मनुष्य ने स्वय अपनी बुद्धि से पैदा कर लिया है, तो हम पूछते हैं कि ईश्वर ने ऐसी बुद्धि वाले मनुष्यों को उत्पन्न ही क्यो किया ? वेदो को निमित्त बना कर जो परस्पर लड़ते हैं, झगड़ते हैं, एक दूसरे को कोसते हैं, उन को जन्म देने की आवश्यकता ही क्या थी? यदि यह जैसे-तैसे हो ही गया था तो वेदमूलक सघर्षों को समाप्त करने के के लिए ईश्वर को अपने आदेश स्पष्ट कर देने चाहिएं थे। उसने आज तक प्रत्यक्षरूप से यह स्पप्टीकरण क्यो नही किया ? वह जनमानस को भ्रम मे क्यों रख रहा है ?
देखो, मनुस्मृति अध्याय ३, श्राद्धविधि-प्रकरण