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________________ (१२२) परिणाम है, जीवनगत बुराइयो का फल है और पाप का फल यदि दुख न होता तो मनुष्य निडर हो जाता, जी भर कर पाप करने मे जुट जाता, ऐसी दशा मे सारा ससार ही नरक बन जाता, इसलिए ईश्वर ने दुःख की रचना की है । तो हम पूछते है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने प्राणियों मे पापकर्म करने की बुद्धि ही क्यो उत्पन्न की ? वास के अभाव मे बांसुरी, कहा ? ईश्वर यदि मानव में पापमय बुद्धि का निर्माण न करता तो पाप हो ही नही सकता था । कितनी विचित्र वात है कि पहले तो ईश्वर ने मनुष्य आदि प्राणियो मे पापकर्म करने की बुद्धि उत्पन्न कर दी और जव मनुष्य आदि प्राणी पाप करते हैं तो ईश्वर उन्हे दुखरूप दण्ड दे डालता है । न ईश्वर पापबुद्धि को उत्पन्न करता और न ससार के प्राणी पाप करते । जब पाप करने की बुद्धि ईश्वर ने स्वय पैदा की है तो उस की जवाबदारी ईश्वर पर ही ठहरती है, उस का उत्तरदायित्व मनुष्य आदि प्राणियो पर कैसे आ सकता है ? ऐसा करने मे ईश्वर को न्यायकारी या दयालु कैसे कहा जा सकता है ? ५ - ईश्वर की सृष्टि मे जितने मनुष्य आदि प्राणी है, सव मे विचार सम्वन्धी भी एकता नही है । पशु-पक्षियो की वात तो जाने दीजिए । मनुष्यो को ही ले ले । मानवजगत नाना मतो और सम्प्रदायो मे वटा हुआ है | सव के भिन्न-भिन्न विश्वास हैं । सनातनधर्मी भाई कहते हैं कि ईश्वर मूर्तिपूजा से प्रसन्न होता है और मुसलमान कहते है कि ऐसा करने से वह रुप्ट हो जाता है । ऐसा क्यो ? एक ही रचयिता की रचना में यह मतभेद क्यों ? क्या ईश्वर एक नहीं है ? हिन्दुओ का ईश्वर अलग है और मुसलमानो का अलग ? यदि ईश्वर है और वह एक
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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