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पांच का महत्त्व
गणित विद्या मे पांच(५)का अंक विशेष महत्ता का स्वामी है । समस्त जगत मे पृथ्वी प्रादि पांच तत्त्वो का ही यह पसारा है। मानव शरीर भी उन्ही पाच तत्त्वो से निर्मित है। मानव शरीर की स्थिति का आधार भी पाच प्राण ही है। मनुष्य के सभी कार्य पाच ज्ञान तथा पांच कम-इन्द्रियो के द्वारा ही सम्पन्न होते है । इस संसार मे जो कुछ मानव द्वारा रचना हुई है, वह मानव के दोनों हाथो की पांच-पांच उङ्गलियों की ही कृपा से हुई है। पांच पाण्डवो ने एक सौ एक कौरवो को परास्त किया था । अत्याचार की निवृत्ति-अर्य श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने पांच प्यारो को ही चुना था । हिन्दू शास्त्र मानव कल्याण की साधना पाच महा यज्ञ ही बतलाते है। इस्लाम ने भो आत्मकल्याणार्थ पाच निमाज़ों का विधान रखा है। सिख मत मे पांच कत्रो अर्थात् केश, कृपान इत्यादि की बडी महत्ता दी है। पांचों मे परमेश्वर कहा गया है।
जैनधर्म के अहिंसा आदि पाच महा सिद्धान्त मानव के प्रात्मकल्याण की प्राचार-शिला है। जो प्राणी जितने भी अंश मे इन सिद्धान्तो को अपना जीवनाङ्गी बना लेगा वह उतना ही ईश्वर कोटि के निकटस्थ पहुच जायेगा।
पूज्य श्री ज्ञानमुनि जी महाराज ने इस पुस्तक मे प्रति