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(९३) ईश्वर का यह दूसरा रूप है, जिसे आजकल हमारे आर्यसमाजी भाई स्वीकार करते है। ईश्वर का तीसरा रूप निम्नोक्त है
ईश्वर एक नहीं है, ईश्वर अनादि नहीं है, सर्वव्यापक नहीं है, सच्चिदानन्द है, घट-घट का ज्ञाता है, अनन्त शक्तिमान है, जगत् का निर्माता नहीं है, भाग्य का विधाता नहीं है, कर्मफल का प्रदाता नही है, ससार के किसी धन्धे मे उसका कोई हस्तक्षेप नहीं है, जीव कर्म करने मे स्वतत्र है, ईश्वर जीव को कर्म करने मे प्रेरणा नही देता, उसे निपिद्ध भी नही करता है। जीव जो कर्म करता है, उस का फल जीव को स्वत ही मिल जाता है, आत्मा पर लगे कर्म परमाणु ही कर्मकर्ता मनुष्य को स्वयं अपना फल दे डालते है, ईश्वर का उनके साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई सम्बन्ध नही है, कर्मफल पाने के लिए जीव को ईश्वर के द्वार नही खटखटाने पडते । जीव सर्वथा स्वतन्त्र है, किसी भी दृष्टि से वह ईश्वर के अधीन नही है। ईश्वर अवतार भी धारण नहीं करता है, वह किसी को मारता नही है और किसी को जिलाता भी नही है । सक्षेप मे कह सकते है
राम किसी को मारे नही, मारे सो नही राम । आप ही आप मर जाएगा, कर के खोटा काम ॥" जीव अपने भाग्य का स्वय निर्माता है, स्वर्ग, नरक मनुष्य की अपनी सद असद् वृत्तियो के परिणाम है। अपनी नैया को पार करने वाला भी जीव स्वय है और उसे डुबोने वाला भी वा स्वय ही है, इस मे ईश्वर का कोई सम्बन्ध नही है ।नइ तह