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चत्रसितपक्षफाल्गुनि शशांकयोगे दिने त्रयोदश्याम् । जजे स्वोच्चस्थेगु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ।। हस्ताधिते शशाके चैत्रज्योत्स्ने चतुर्दशी-दिवसे ।
पूर्वाण्हे रत्नघटविबुधेन्द्राश्चक्रुरभिपेकम् ।। पंत्र शुक्ला योदशी के दिन, अर्यमा योग मै जबकि समस्त ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानो पर स्थित थे, चन्द्रमा हस्त नभन्न में था, ऐसे शुभ लग्न में प्रापका जन्म हुप्रा । चतुर्दशी के दिन पूर्वाह में देवेन्द्रो ने रत्न-निर्मित कलशो से प्रापका अभिषेक किया ! स्तोजरार ने जन्म के समय हस्त नकार लिखा है, परन्तु ज्वेताम्बर-शास्त्र उस समय उत्तराफालागी नक्षर मानने है
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श्री तिलकधर शास्त्री