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________________ नन्दो - सूत्र ६७. सुहमो य होइ - कालो काल की गति प्रति सूक्ष्म है । १६२ ६८. खीरमिव जहा हंसा जे घुट्ट ति गुरुगुणसमिद्धा । 呀 विवज्जति इह दोसे तं जाणसु जाणिय परिस ११५२ ६६. सेलघण - कुडंग - चालिणी, परिपुण्णग-हस - महिस- मेसे य । जलूग - विरालो मसग जाहग - गो - भेरि - प्रभारी १५।१ - ७०. सुठुवि मेहसमुदए होइ पभा चंदसूराणं जगं सव्वं वावि सव्वं नेव ७१. सन्च १६४ ] जइ पि ते ताणाय f घणं १।४२ तुहं, भवे । प्रपज्जतं, ' जैसे हंस पानी को छोड़ कर दूध का पान करते हैं, उसी प्रकार अच्छे समाज के लोग दोषो को छोड़कर गुणो को ग्रहण कर लेते हैं । तं तव १४:३९ चौदह प्रकार के श्रोता होते हैचिकने गोल पत्थर मे, मेघ से, घड़े जैसे, छाननी से, छानने के कपड़े जैसे, इस जैसे, भैसे के समान, मेढे के सदृश, "मच्छर जैसे जोक जैसे, बिल्ली से जाहक ( चूहे जैसे प्राणी) जैसे, गाय के समान, नगारे जैसे और अहीरपत्नी जैसे । उत्तराध्ययन मेघो के छा जाने पर भी सूर्य-चन्द्र का प्रकाश तो होता ही है । अर्थात् गणवानो की गुण-गरिमा छिप नही सकती । अगर सारा ससार और संसार की समस्त सम्पदाए तुम्हारी हो जांय तो भी तुझे सन्तोष नही हो सकता और न हो वे सम्पत्तियां तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं । महावीर वचनामृत ]
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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