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________________ ४३ त सच्च भगवं। “सत्य ही भगवान है। રાર ४४ मच्च च हिय च मिय च । गाणं च । सत्य वचन भी ऐसा- बोलना चाहिए जो हितकारी, थोड़े शब्द मे कहा गया हो और जो सब के लिये ग्राह्य हो । २२ ४५ अलियवयण अयसकरं । वेरकरणं, मण-सकिलेसवियरणं । १२ झूठ बोलने से अपयश होता है, पारस्परिक शत्रुता बढती है और मानसिक कष्ट की वृद्धि होती है । ४६ अप्पणो थवणा परेसु निंदा। २१२ अपनी प्रशसा और दूसरो की निन्दा दोनो को भसत्य ही समझो। ४७ भीतो अन्न पि हु मेसेज्जा। स्वय भयभीत होनेवाला व्यक्ति २२ , अन्यो को भी भयभीत कर देता ४८ कुद्धो" सच्च सोलं विणयं हणेज्ज। क्रोध से अन्धा हुआ व्यक्ति सत्य, शील और विनय सवका नाश कर देता है। २१२ ४६ ण भाइयव्व, भीतं ख भया - अइति लहुय कभी डरो मत'! निर्भय रहो। भयभीत के पास ही भय आता है। २।२२ ५० अणुन्नविय गेण्हियन्य २।३ दूसरे की वस्तु को उससे पूछ कर ग्रहण करो। १६१] पञ्च-कल्याणक]
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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