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३० चह ठाणेह जीवा,
तिरिक्ख जोणिवत्ताए. कम्मं पगति-माइल्लियाए, निडिल्लयाए, श्रलियवयणेणं कूड तुला कूडमाणेणं
४|४
३१ मोहरिए सच्चत्रयणस्स पलिमंथू अधिक बोलना मत्य का विघातक
દાર
है ।
३२ गिलाणस्स प्रमिलाए
वेयावच्च करणयाए प्रसुट्ठेयव्वं भवइ ।
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३३ नर्वाह ठाणेह रोगुप्पत्ती सिया श्रच्चासनाए, अहियासणाए, प्रइनिद्दाए, श्रइजागरिएण, उच्चार निरोहेण, पासवण - निरोहेण, श्रद्धाण-गमणेणं, भोयणपडिकूलयाए, इंदियत्थfastaणयाए ।
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३४ चह ठाणेह सते गुणे
नासेज्जा- कोहेणं, पडिणिसेवेणं,
मिच्छत्ता
४|४
प्रकयण्णुयाए, भिणिवेसेणं ।
३५ सवीरिए परायिणति, श्रवीरिए परायिज्जति ।
पञ्च-कल्याणक ]
चार कारणो से जीव पशुयोनि मे जन्म लेते हैं - छल-कपट झूठ
करने से, घूर्तता करने से, वोलने से और कम तोलने तथा कम नापने से ।
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रोगी की सेवा के लिये बिना हिचकिचाहट के तैयार रहना चाहिए ।
नौ कारणो से रोग उत्पन्न होते हैं - प्रति भोजन से अरुचि कर भोजन से, बहुत सोने से, बहुत जानने, शौच - वाघा रोकने से, मूत्र वाधा रोकने से, अधिक चलने से, प्रकृति-विरुद्ध भोजन करने से और विषय-वासनाओ से अधिक लीन रहने से ।
भगवती सूत
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चार दुर्गुणो के कारण मनुष्य के सभी गुण नष्ट हो जाते हैंक्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह |
शक्तिशाली विजयी होता है और शक्तिहीन पराजित होता
है ।
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