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पत्र-वम-दीपिकाकुल-विविधद्रुमखण्डमण्डिते रम्य । पावामगरोद्याने व्युत्सर्गेण स्थितो मुनिः । कातिककृष्णस्यान्ते स्वातावृक्षे निहत्य कर्मरजः।
अवशेष संप्रापदजरामराक्षय सौरण्यम् ॥ पत्र-समूहो से युक्त दीर्घिका अर्थात् बावड़ी से एब अनेक प्रकार के वृक्षो से मण्डित पावानपर के उद्यान मे पाप व्युत्सगं तप मे स्थित थे, तब कार्तिक कृष्णा के अन्त में(कार्तिक कृष्ण अमस्या में) स्वाति नक्षत्र मे, प्रवशिष्ट कर्म-धूलि को साफ करके भधातिया कर्मों का नाश करके पापने अविनाशी अजरामर पद प्राप्त किया ।
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जिवाण कल्याणक श्रीमुनिनेमिचन्द्र जी