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विपय नही है। उन्होने प्रमु-सत्ता के बाद प्रकाश के पोछे भागने की अपेक्षा उसके अन्त.स्रोत को पहचाना है और सभी के लिये उस स्रोत तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने मानव को मनुष्य तो क्या देवतायो की गुलामी तफ से मुक्त किया है। ऐमें प्रकाग-पुरुष के लिये हार्दिक श्रद्धा का उमड़ पड़ना कोई विशेष प्राश्चर्य नहीं
भगवान महावीर का 'जीवन' राजा का जीवन होते हुए भी एक अकिंचन तपस्वी का जीवन है, ससीम मत्ता से बंध कर विचरण करते हुए भी एक विराट सत्ता का जीवन है, बिन्दु में समाए सिन्धु का जीवन है। यद्यपि अनेक जैन मुनीश्वरों ने भगवान महावीर के पाप-ताप-हारी जीवन का परिचय दिया है, उसे काब्य के Fप में भी उपस्थित किया है, प्रागमो की वीथियो में विचरण करने पर उनके जीवन के विभिन्न भागो का परिचय भी प्राप्त हो जाता है, फिर भी उनके क्रमबद्ध जीवन-चरित की आवश्यकता बनी हुई थी।
सन्मति भगवान महावीर का जीवन अन्तर्मुखी जीवन है, वाह्यप्रक्रियाओ से उदासीन जीवन है, अत: उसमे वे घात-प्रतिघात नहीं है जो सामान्य जीवन-चरितो को लोकरुचि के निकट ले पाते है, यही कारण है कि उनका जीवन सामान्य जनता की अध्ययन-वृत्ति का विशेष विपय नहीं बन पाया। प्रायः आज तक यही समझा जाता रहा है कि उनका जीवन पलायनता का पोषक है, विरक्ति की प्रवृत्ति को जागृत करनेवाला है, वह जीना नही मृत्यु सिखाता है, अतः जन-मन उसकी ओर जाते हुए डरता रहा है, परन्तु विगत दशको मे विद्वानो ने उनके जीवन का विश्लेषण किया, उनके सिद्धान्तो को मानवता की कसौटी पर परखा तो यह सिद्ध हुआ कि उनका जीवन तो वह सजीवनी है जो मृतको में भी स्फूति जागृत कर देता है, उनमें नवचेतना का सचार कर देता है, अतः उनके जीवन-चरितो के प्रकाशन की रुचि का जागृत होना स्वाभाविक था।
भगवान महावीर का जीवन-परिचय मैं नहीं देना चाहता, मैं तो उनके जीवन की उस महत्ता की अोर सकेत करना चाहता ह जिससे हम आज तक अनभिज्ञ रहे है।
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