________________
१. वैतरणी नदी-सा दुख मया,
है स्वयं ही यह आत्मा । स्वयं ही इस आत्मा को,
शाल्मी तरु सा कहा ।।
२. है स्वयं ही आत्मा यह,
काम धेनु सुख - मया । स्वर्ग का नन्दन समझ लो,
है स्वयं यह आत्मा ॥
३. दुख का
और सुख का बस,
है
जनक यह
आत्मा ।
*
महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ॥