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में
कभी,
समभाव जो खोता नहीं ।
लाभ - हानि
सुख में कभी हँसे नहीं, दुख में कभी रोता नहीं ||
क्षणिक जीवन का कभी भी,
मोह जो करता नहीं. मृत्यु हो सन्मुख खड़ी पर, मन में जो डरता नहीं ||
छुप्ट फो निन्दा जिते,
आफुल बना सकती नहीं । सुजन फो श्रद्धाञ्जलि, जिन को लुभा सकती नहीं ।
मान पा फर भी कभी,
जो मान में आता नहीं । सन्मान मिल जाने पे जो,
अभिमान में आता नहीं ||
महापुरष यह समभाव पा मम कमी नहीं मूलता |
★ महावीर ने यह सुचन प्रिय शिष्य गौतम ने कहा ।